दादरा, नगर, हवेली और दमण, दीव में पंचायत और नगर पालिका के चुनाव नजदीक आ रहे हैं।
हालांकि सोचने वाली बात यह है की चुनाव से क्या मीलता है?
चुनाव से लोगों को नये पंचायत सभ्य और नगर सेवक मीलते हे। यह चुनें हुए जन प्रतिनिधि होते हैं जीनकी जीम्मेवारी होती है की जीनका वह प्रतिनिधित्व कर रहे हैं उनकी तकलीफों को सरकार तक पहुंचाना और उसका सबके हित में हल लाना।
कया जन प्रतिनीधि यह कर पा रहे हे? लोगों के हिसाब से नही और सरकार के हिसाब से भी ना ही होगा। यह जन प्रतिनीधिओ के लिये लोगों में एसी भावना हे की यह लोग सरकारी चमचे हे और सरकार यह मानती हे की यह चुने हुए जन प्रतिनीधि सरकार के लिये बोज है यह ना हो तो बिना रोकटोक के अपना काम कर सकते हे।
यह चुने हुए जन प्रतिनीधि ना तो जनता का काम करवा सकते है, ना तो ख़ुद का काम करवा सकते हे। सरकार उनका सुनती भी नही है कयुकी सरकार जन विरोधी कार्य करती है जीसका इनको विरोध करना पड़ता हे। उनके ज़्यादातर अधिकार पर सरकार ने रोक लगा रखी है और यह अधिकारों का उपयोग अधिकारी करते हे। जन प्रतिनीधिओ की सभा में अधिकारीओ द्वारा पुलिस बुलाइ जाती हे।
एेसे माहौल में चुनाव करवाने की उपयुक्तता कया हे? सरकार चुनाव इस लिये करवाना चाहती है कयुकी सरकार को नये ग़ुलाम चाहीये जो उनकी हर जन विरोधी नीति को जन उपयोगी नीति बता कर लोगों को मूर्ख बना सके। कया यह चुनाव में लोगों को उमेदवारी करनी चाहीये?
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